Friday, July 7, 2017

अपनी आवाज ढूंढ़ता हूँ

अपनी आवाज ढूंढ़ता हूँ

कहीं दिल के अँधेरे कोने में पड़ी
कहीं शोर में दबी
कुछ खरखराती कुछ डबडबाती
जब कुछ नहीं कह पाती
और फिर चिल्लाती
अपनी वो आवाज ढूंढता हूँ


कोशिश करता हूँ बात को रखने की
शब्दों में उलझ जाता हूँ पर
जब जज़्बात को बयां करता हूँ
सही गलत के फेर में
दो की चार करता हूँ


जो साथ दे मेरा
शब्दों की लहरों
और उन लहरों के समंदर में
विश्वास की नाव सा
वो आवाज़ ढूंढता हूँ


वजह क्या है
या कौन है
मैं हूँ ?
सिर्फ मैं ही हूँ या और भी हैं?
ये बात कुछ इस तरह से साफ़ करता हूँ

वो ख्याल हैं
जो सिर्फ ख्यालों में ही हैं
वो दूसरों की दी मिसाल हैं
जो सिर्फ मिसालों में ही हैं
मेरे इन मुखोटों को
चीर कर
जो निकल जाये
इस दिल की वो
आवाज़ ढूंढता हूँ


जब थक जाता हूँ ये सब सोच कर
नहीं कह पता सबकुछ भी बोल कर
एक कोने में फिर बैठ कर
एक कलम के सहारे
शब्दों को फिर आवाज़ देता हूँ
किसी तरह से भी
अपनी आवाज़ ढूँढता हूँ

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