Friday, July 7, 2017

चलते रहना


चलते रहना
 

मन निराश हो, हताश हो
खुश हो, पलाश हो
इसके बावजूद तुम चलते रहना

कुछ फर्क पड़े
न पड़े
क्या फर्क पड़ता है
तुम चलते रहना

कभी जीतोगे कभी हारोगे
मायूस भी होना
उल्लासित भी
पर चलते रहना

कभी दबोगे
कभी दबा देना
प्रभाव के लेन-देन में कटेंगे कुछ जिन्दगी कुछ हिस्से
समझ लेना और चलते रहना

कभी जिन्दगी की तलाश में खो जाओगे
कभी खुद को खो के पा भी जाओगे
क्या करोगे रुक कर भी
चलते रहना

कभी मन को मार कर
कभी मन से मजबूर हो कर
जाओगे तो सही उसे मनाने
नहीं माना तो ?
चल सकोगे?


कभी नगद से कभी उधार से
इस जिन्दगी के बाज़ार से
चुन चुन कर तुम दिल भर लेना
कहीं बात नक्की न हुई तो आगे बड़े लेना
और भी रेहड़ीयां लगी हैं आगे
चलते रहना

कभी पाने की जिद्द में बहुत कुछ खो दोगे
कभी बेपरवाही से पाते जाओगे
खोने का दुःख तो होता है
इसके बावजूद तुम चलते रहना

जब थक के बैठोगे किसी ढलान पर
या साँस लोगे हाथ से थामकर पहाड़ को
डूबते सूरज को देखकर बचपन को याद करोगे
या चींटी को देखकर हिम्मत लोगे
बस ये याद रखना
ये अनन्त का सफ़र है

चलते रहना |


अपनी आवाज ढूंढ़ता हूँ

अपनी आवाज ढूंढ़ता हूँ

कहीं दिल के अँधेरे कोने में पड़ी
कहीं शोर में दबी
कुछ खरखराती कुछ डबडबाती
जब कुछ नहीं कह पाती
और फिर चिल्लाती
अपनी वो आवाज ढूंढता हूँ


कोशिश करता हूँ बात को रखने की
शब्दों में उलझ जाता हूँ पर
जब जज़्बात को बयां करता हूँ
सही गलत के फेर में
दो की चार करता हूँ


जो साथ दे मेरा
शब्दों की लहरों
और उन लहरों के समंदर में
विश्वास की नाव सा
वो आवाज़ ढूंढता हूँ


वजह क्या है
या कौन है
मैं हूँ ?
सिर्फ मैं ही हूँ या और भी हैं?
ये बात कुछ इस तरह से साफ़ करता हूँ

वो ख्याल हैं
जो सिर्फ ख्यालों में ही हैं
वो दूसरों की दी मिसाल हैं
जो सिर्फ मिसालों में ही हैं
मेरे इन मुखोटों को
चीर कर
जो निकल जाये
इस दिल की वो
आवाज़ ढूंढता हूँ


जब थक जाता हूँ ये सब सोच कर
नहीं कह पता सबकुछ भी बोल कर
एक कोने में फिर बैठ कर
एक कलम के सहारे
शब्दों को फिर आवाज़ देता हूँ
किसी तरह से भी
अपनी आवाज़ ढूँढता हूँ

चलते रहना

चलते रहना   मन निराश हो, हताश हो खुश हो, पलाश हो इसके बावजूद तुम चलते रहना कुछ फर्क पड़े न पड़े क्या फर्क पड़ता है ...