Saturday, November 19, 2016

हल्का-फुल्का

कई दिनों से हिंदुस्तान-पाकिस्तान में युद्ध होने की बातें चल रही हैं।  सट्टे बाज़ार में 1 के 5 का भाव चल रहा है। यानि की अगर युद्ध हुआ तो 5 गुना, लगाये हुआ पैसे का मिलेगा। अफ़वाह ये है की पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म ने काफी बड़ा पैसा लगा रखा है इसी पे, तो युद्ध होना तय मन जा रहा है।

दूसरा सट्टा युद्ध न होने पे चल रहा है।  1  के 3, यानि नहीं हुआ तो 3 गुना मिलेगा। इतिहास को देखते हुए, ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने इसी पे लगा रखा है। अब देखना ये है की फायदा किसको ज्यादा होता है, सट्टा खेलने वालों का या न खेलने वालों को। चलिए, पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म की रिहायशगाह में तशरीफ़ ले चलते हैं।

वज़ीर-ए-आज़म :
"बेग़म, तुम्हें हमारा कुछ गम है की नहीं। खुद के वास्ते अब तो वो ज़ेवरात हमें दे दो, जो 'हमने' तुम्हे दिए थे। तुम्हारे वालिदाना मलकियत पे हम कोई हक़ नहीं जता रहे। 1 का 5 चल रहा है, कल हम एक और शगूफ़ा छोड़ेंगे सरहद पर। जैसे ही मामला 1 का 10 हो जायेगा, हम ये ज़ेवरात लगा देंगे और साथ के साथ हमला बोल देंगे।  मान लो आधे घंटे में सब वापिस, 10 गुना होके। "

"फिर कुछ दिनों में जब सब शांत हो जायेगा, सब माल-असबाब लेकर पंहुच जायेंगे इंगलैंड। वहां सब हिन्दू-मुस्लिम अंग्रेजों की सल्तनत में मिलकर रहते हैं। हापुस वही पे एक्सपोर्ट होता है अच्छे वाला, खूब मज़े लेंगे।”

बेग़म साहिबा :
" लाहौल विला कुव्वत, ये तुम्हारे सिर के बाल इसलिए खुद को प्यारे हो गए हैं। जब देखो हापुस, हापुस, हापुस।  आम न हुआ, मरदूदी ख़रबूज़ा हो गया।  गर्मी करते हैं ये,  उसी से तुम्हारे बालों का जनाज़ा उठ गया है। भिगोते भी नहीं हो तुम।  अरे, आम क्या भिगोने तुम तो हाथ भी नहीं धोते। "                   

" आम की पेटी देखते ही गामा पहलवान बन जाते हो। पिछली बार क्या हुआ था, पूरी कील ऊँगली में घुस गयी और ऐसी हाय-तौबा मचाई की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी। अल्लाह का नाम लो, थोड़ा खुद पे और देश पे रहम खाओ।  आम के चक्कर में कितनों को बेवा बनवाओगे।  जब क़ायनात में 1 आम के पीछे 1000 सिरों का हिसाब देना पड़ेगा तो जहन्नुम में भी जगह नहीं  मिलेगी। हाँ, शायद मिल ही जाये।  वहां भी वज़ीर-ए-आज़म हो जाओ।”
      
“ मैं अपने ज़ेवरात की तस्वीर भी नहीं दूंगी तुम्हें।  वो जो हिंदुस्तान के वज़ीर-ए-आज़म ने तुम्हारी अम्मी के लिए साड़ी भेजी थी, उसी को नीलाम कर दो। अच्छे पैसे मिल जायेंगे।"


वज़ीर-ए-आज़म (मन में ) : इस औरत से ज़ुबान लड़ाना ही बेकार है।  
"ठीक है ठीक है , मैं कुछ इंतेज़ाम कर लूंगा।  तुम ले जाना सब अपने साथ कब्र में "
                                                                        
बेग़म साहिबा (मन में):  या अल्लाह, इनकी खोपड़ी में दिमाग़ की जगह आम की गुठली क्यों रख दी।  
"हाँ जाओ जाओ।  पता है मुझे तुम्हारे इंतेज़ाम का।  ये अमेरिका वाले तुम्हे स्पोंसर कर ही देंगे। जहन्नुम में जाओ सब। "
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तक़दीर ने कुछ साथ दिया वज़ीर साहब का। सब कुछ सोच के मुताबिक ही हुआ।  पर युद्ध के बजाए 2-3 हफ्ते की लड़ाई हुए। पाकिस्तान की माली हालात खस्ता हो गयी। आर्मी ने  देश पे राज़ करना शुरू कर दिया और वज़ीर साहब 'डिप्लोमेटिक ट्रांसफर' लेके इंगलैंड आ गए।  सट्टे के सबसे बड़े फायदेगार वही थे।


गर्मी की शुरुआत थी हिंदुस्तान में। इंगलैंड में बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था हापुस का। वज़ीर साहब ने सुबह की सैर भी शुरू कर दी।  बेगम के तानो से बचने के लिए, ताकि जब वो आम खाने बैठे तो कोई चिकचिक न हो।  रोज़ नहाते थे और बेग़म के सामने ही दिन में 8-10 बार हाथ धो लेते थे। बेग़म के लिए ये सब खिसियाना था,पर उनकी शिद्दत देख के वो भी कुछ न कहती ,बस दुआ करती हापुस जल्दी आएं और पतले छिलके वाले हों।  बेग़म को भी हापुस पसंद थे, पर बोलती नहीं थी। उन्हें 'पार्टनर-इन-क्राइम' का ख़िताब नहीं चाहिए  था।

वहां हापुस की फसल पूरी शिद्दत पर थी पर यहां एक भी नहीं पहुंचा। वज़ीर साहब बौखलाए हुए घूम रहे थे। एम्बेसी से पूछताछ करवाई।  पता चला,क्योंकि इंग्लैंड यूरोप से कट गया है (#brexit),  और पाउंड के रेट बेतहाशा गिरे हुए हैं, सब हापुस अमेरिका और यूरोप को एक्सपोर्ट हो रहा है। वज़ीर साहब ने माथा पीट लिया।  इंगलैंड में हिंदुस्तानी एम्बेसी से हापुस मिल सकते थे पर किस मुंह से जाते। यूरोप में जाना मुमकिन न था।  और अमेरिका जाना कोई न कोई ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाता।
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वज़ीर साहब घर पे बैठे थे, यू-ट्यूब पे नसीरुद्दीन शाह वाला मिर्ज़ा ग़ालिब देख रहे थे। फ़िज़ां में ग़ज़ल गूंज रही थी
" ... रोइये ज़ार ज़ार क्या, करिये हाय हाय क्यों ... "

बेग़म साहिबा कमरे में आयी।  बत्ती जलाई , यू-ट्यूब पॉज किया , प्लेट में एक हापुस रख दिया।

बेग़म साहिबा :
"वो जो हिंदुस्तानी एम्बेसी वाले शर्मा जी की बीवी हैं न , शायना।  उनके साथ रोज़ शाम को सैर होती है।  कल बस बातों-बातों में हापुस की बात चल पड़ी।  बोली, हाय पहले पता होता तो 1-2 दर्ज़न आपको दे देती।  अब तो 1 -2 ही बाकी होंगे।  

मैंने मना किया पर वो अपना आखिरी हापुस दे ही गयी। शर्मिंदा हो रही थी की एक ही है।  अच्छी लेडी है।"

वज़ीर साहब ने कुछ न कहा।  शायद सुना ही नहीं, वो उठे, आम को सुंघा , एक गहरी साँस छोड़ी, शरीर की सारी तनावट जैसे दूर हो गयी। पूरे आम को घुमा-घुमा के अंगूठे से दबाया। आम का रस थोड़ा निकाल के प्लेट में डाला ताकि चस्का न लगे।  आम होंटो से लगा के अंदर की और खींचा।  

पूरा मुंह आम से भर गया, एक ही बार  में आधा आम निपटा दिया। यू-ट्यूब पे ग़ज़ल बदली और बेग़म की तरफ आधा आम सरका दिया। बेग़म छिलका निकाल के आम खाने लगी। उनकी उंगलियों से रस टपक रहा था और वज़ीर साहब आम को मुंह  में ही रखे हुए बैठे थे।  फ़िज़ां में ग़ज़ल गूंज रही थी

"... कुछ न समझे खुद करे कोई "

Tuesday, November 15, 2016

Different ways people tried to convert black money :)


All these tricks are from news papers, social media and TV news only. Some are obsolete already and some new may come before 31st Dec. Let's c++.
  1.  Book AC Tier 1 railway tickets as 500/1000 are allowed  till 24 Nov'16. 
     railways-sees-1000-per-cent-jump-in-ticket-bookings-after-currency-ban
  2.  People bought gold at Rs. 50,000 per 10 grams. Actual gold rate Rs. 29,500.
  3.  Builders or Businessmen  having good number of laborers , gave cash and asked them to get exchange from bank with a 'cut' . Like take Rs. 5000 from me and return Rs. 4000
  4. People went to their native places, small villages and asked people to sell their gold, golden ornaments with cash.  So, cash is distributed in many hands. Win -Win.
  5. McDonalds doing it :)   Cheater McDonalds

Thursday, August 18, 2016

झख

 -- एक --
जाम पीके परतें खुलती चली गयी,
एक दर्द था अटक हुआ
वो भी डकार के साथ बाहर  आ गया।

-- दो --
ट्रैफिक में रुका हुआ, मैं ख्यालों में खोया था
जिंदगी की जद्दोजहद को समझ रहा था
एक ऑटो वाला आया और कट मार के निकल गया

-- तीन --
सुबह ब्रश करने से दांत साफ़ होते हैं
रात को ब्रश करने से दांत साफ़ होते हैं
तो क्या दोपहर को ब्रश करने से दांत साफ़ नहीं होते?

-- चार --

चलते रहना

चलते रहना   मन निराश हो, हताश हो खुश हो, पलाश हो इसके बावजूद तुम चलते रहना कुछ फर्क पड़े न पड़े क्या फर्क पड़ता है ...